जेएमएम की पारंपरिक सीट रही है डुमरी
माना जा रहा था कि साल 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड की डुमरी सीट पर जगरनाथ महतो (अब स्वर्गीय) की जीत इसलिए हुई कि यह उनकी पारंपरिक सीट थी। तकरीबन दो दशक तक वे इस सीट पर काबिज रहे। उनकी डुमरी की सियासी जमीन इसलिए भी पुख्ता रही कि आजसू और बीजेपी की इस सीट पर तब सहमति नहीं बनी थी और दोनों दलों ने अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। दोनों यानी भाजपा और आजसू को 2019 में जितने वोट मिले थे, उससे कम वोट ही जगरनाथ महतो को मिले थे।
पहले मंत्री बनाया, बाद में चुनाव लड़ाया
जगरनाथ महतो के निधन के बाद जेएमएम नेता और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने बड़ी होशियारी से जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को उनके स्थान पर मंत्री बना दिया। इसके बाद जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो बेबी देवी को गठबंधन की ओर से प्रत्याशी बनाया गया। बीजेपी और आजसू इस बीच तय कर चुके थे कि उनका साझा उम्मीदवार होगा। तालमेल में यह सीट आजसू को दी गई और आजसू ने यशोदा देवी को एनडीए का उम्मीदवार बनाया। यशोदा देवी ने जगरनाथ महतो से भी मुकाबला किया था और पिछड़ गई थीं। इस बार भी एनडीए उम्मीदवार के रूप में यशोदा देवी ने जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी से जोरदार मुकाबला किया, पर एनडीए की रणनीति पर सहानुभूति लहर ने पानी फेर दिया।
बेबी की जीत में कारगर रहे तीन फैक्टर
बेबी देवी की जीत में तीन फैक्टर ने काम किया। पहला यह कि डुमरी जेएमएम की पारंपरिक सीट रही है। दूसरा कि जगरनाथ महतो के निधन से बेबी देवी के प्रति लोगों के बीच सहानुभूति लहर ने काम किया। नतीजा यह हुआ कि बेबी देवी ने यशोदा देवी को 13-14 हजार वोटों के खासा मार्जिन से पराजित कर दिया। बीजेपी और आजसू की सम्मिलित ताकत भी इस बार काम नहीं आ पाई। डुमरी यद्यपि जेएमएम की सीट ही थी, लेकिन पिछले अनुभव को देखते हुए माना जा रहा था कि साझा उम्मीदवार होने की स्थिति में एनडीए उम्मीदवार को कामयाबी मिल जाएगी। इसलिए इसे सीधे तौर पर यह कहना कि यह विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की जीत है, उचित नहीं होगा। हां, यह बात जरूर है कि हेमंत सोरेन के कार्यकाल में जितने उप चुनाव हुए, उन पर विपक्षी जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अपनी पकड़ मजबूत रखी है और एनडीए यानी बीजेपी-आजसू के साझा प्रयास के बावजूद जेएमएम गठबंधन उपचुनाव जीतता रहा है।
अगले साल चुनावों में दिख सकता है असर
अगले साल झारखंड में लोकसभा के तुरंत बाद ही विधानसभा के भी चुनाव होंगे। बीजेपी ने पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी को फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा है। मरांडी के अध्यक्ष रहते उन्हें अपनी काबिलियत साबित करने का डुमरी सीट बेहतर अवसर थी। आजसू को यह सीट देने पर मरांडी की सहमति से साफ है कि उनकी रणनीति में कोई कमी नहीं थी। लेकिन लोकतंत्र में जनता का निर्णय ही यथार्थ है। जनता के निर्णय अनुकूल है कि प्रतिकूल, इसका भी कोई एक कारण नहीं होता। लेकिन प्रतिकूल परिणाम से कुछ समझने लायक संदेश तो मिलते ही हैं। और यह संदेश भाजपा के लिए शुभ नहीं दिखता। कम से कम झारखंड में।