सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की। सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि राजस्थान के कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को दोषी ठहराना उचित नहीं है क्योंकि माता-पिता की उम्मीदें भी बच्चों को अपनी जीवनलीला समाप्त करने के लिए विवश कर रही हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कोटा में निजी कोचिंग संस्थानों (Coaching Institutes in Kota) के नियमन और उनके लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं।
उन तथ्यों पर गौर करते हुए कि इस साल कोटा में लगभग 24 छात्रों ने आत्महत्या कर ली है और कोटा में छात्रों के लिए इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग की पेशकश करने वाले संस्थान बढ़ गए हैं, पीठ ने कहा- छात्रों की आत्महत्याएं कोचिंग संस्थानों के कारण नहीं हो रही हैं। पीठ में न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी (Justice SVN Bhatti) भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोटा में आत्महत्याएं इसलिए हो रही हैं क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। मौतों की संख्या बहुत अधिक हो सकती हैं। सर्वोच्च अदालत मुंबई स्थित डॉक्टर अनिरुद्ध नारायण मालपानी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में बच्चों को ‘वस्तु’ के रूप में इस्तेमाल किए जाने और उन्हें स्वार्थी लाभ के लिए मौत के मुंह में धकेलने के लिए कोचिंग संस्थानों को जिम्मेदार ठहराया गया था।
अधिवक्ता मोहिनी प्रिया (Mohini Priya) द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कोटा में आत्महत्याओं ने सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं निजी कोचिंग संस्थानों के लिए आम हैं। ऐसा कोई कानून नहीं है जो उनको जवाबदेह ठहराए।
पीठ ने कहा- हममें से ज्यादातर लोग कोचिंग संस्थानों को पसंद करना नहीं चाहेंगे। आजकल परीक्षाएं इतनी प्रतिस्पर्धात्मक हो गई हैं और माता-पिता बच्चों से इतनी ज्यादा उम्मीदें लगा लेते हैं कि बच्चे उन पर खरा नहीं उतर पाते। प्रतियोगी परीक्षाओं में बच्चे आधे अंक या एक अंक से असफल हो जाते हैं।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वह या तो राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए क्योंकि याचिका में उद्धृत आत्महत्या की घटनाएं काफी हद तक कोटा से संबंधित हैं या केंद्र सरकार को एक अभ्यावेदन दें क्योंकि हम इस मुद्दे पर केंद्र को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं। इसके बाद अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने यह कहते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी कि याचिकाकर्ता एक अभ्यावेदन देना पसंद करेगा। कोर्ट ने याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी।
याचिका में कहा गया था कि मानवाधिकार के लिहाज से छात्रों की आत्महत्या बेहद चिंताजनक है। छात्र आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के बावजूद कानून बनाने में केंद्र का ढुलमुल रवैया युवाओं की रक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है जो देश के भविष्य हैं। अनुच्छेद 21 के तहत युवाओं का सम्मान के साथ जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार है।
राजस्थान सरकार ने हाल ही में निजी कोचिंग संस्थानों के कामकाज को नियंत्रित और विनियमित करने के एक कदम के रूप में राजस्थान कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक, 2023 और राजस्थान निजी शैक्षणिक संस्थान नियामक प्राधिकरण विधेयक, 2023 पेश किया था लेकिन अभी तक ये विधेयक कानून नहीं बन सके हैं। इन विधेयकों में कोचिंग संस्थानों द्वारा आवश्यक अध्ययन सामग्री की निगरानी शामिल था।
याचिका में कहा गया है- कोचिंग संस्थान उद्योग अब एक बाजार बन गया है जहां छात्रों को धोखा दिया जाता है, और उन्हें अपना शिकार बनाया जाता है। यह ऐसा उद्योग बन गया है जो छात्रों की भलाई की तुलना में अपने लाभ पर ज्यादा ध्यान देता है। 14-16 साल की उम्र के बच्चे अचानक ऐसे प्रतिस्पर्धी माहौल के संपर्क में आ जाते हैं, जिससे उनमें दबाव झेलने की क्षमता जवाब दे जाती है।
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